बचपन का ज़माना होता था
खुशियों का खज़ाना होता था
चाहत चाँद को पाने की
दिल तितलियों का दीवाना होता था
खबर न थी कुछ सुबह की
न शाम का ठिकाना होता था
थक हार के स्कूल से आना
पर खेलने भी जाना होता था
दादी की कहानिया होती थी
परियो का फ़साना होता था
बारिश में कागज की कश्ती थी
हर मोसम सुहाना होता था
हर खेल में साथी होते थे
हर रिश्ता निभाना होता था
पापा की वो डाट गलती पर
मम्मी का मनाना होता था
गम की जुबान न होती थी
न ज़ख्मो का पैमाना होता था
रोने की वजह न होती थी
न हसने का बहाना होता था
अब नही रही वो जिंदगी
ऐसा बचपन का ज़माना होता था
भई वाह, बचपन याद आ गया
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
शुभकामनाये
वो गजल याद आ गयी
ReplyDeleteये दौलत भी ले लो
ये शोहरत ......................
मगर मुझको लौटा दो
वो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती
वो बारिश का पानी
बेहतरीन प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबचपन के दिन भी क्या दिन होते हैं!
ReplyDeleteबढ़िया कविता...
बहुत ही बढ़िया चित्र खींचा है आपने बचपन का.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर मेरा आना सार्थक हुआ.
सलाम.
sagebob mera hosla badhne ke oue mere blog par aane ke liye thanks
ReplyDeleteरोने की वजह न होती थी
ReplyDeleteन हसने का बहाना होता था
अब नही रही वो जिंदगी
ऐसा बचपन का ज़माना होता था ......
खूबसूरत ग़ज़ल ....बेहद शानदार अशआर.....